शुक्रवार, २६ नोव्हेंबर, २०१०

मंतरलेले दिवस - ८

नेहमीप्रमाणे आम्ही कॅन्टीन  मध्ये  नाश्ता  करायला  गेलो होतो..  काहीतरी  आणायला  म्हणून  counter  पाशी  गेले  तेव्हा  एक  मुलगा  पुढे  उभा  होता..  जागेवर आल्यावर त्याच्याकडे  सहज  लक्ष  गेलं  तर  तो  त्याच्या  मित्राच्या  आधाराने  चालत  होता..  नीट पाहिल्यावर कळलं  कि  त्याला  अजिबात  दिसत  नव्हतं..   त्याच्या  शेजारी  मी  उभी  होते  तेव्हा हे  मला  चुकूनही  जाणवलं  नव्हतं..  आम्ही  सगळ्याजणी  चाटच  पडलो..  काहीच   दिसत  नसताना  तो  सगळं  कसं  करत  असेल..  प्रत्येक  क्षणाला  त्याला एखाद्याचा  आधार घ्यावा लागत  असेल… campus किती  मोठा  आहे, साधं  canteen मध्ये  जायचं  म्हणालं  तरी  कोणीतरी  सोबत  लागत  असेल..  तो  कोणत्या  प्रकारचं  काम  करत  असेल,कसं  करत  असेल..  तो कुठे  राहत  असेल..  हिंजेवाडीला  इतक्या  लांब  कसा  येत  असेल?

असं  म्हणतात  कि  एखादी  गोष्ट  आपल्याला  कमी प्रमाणात  मिळाली  असेल  तर  देवाने  दुससरी  कोणतीतरी  गोष्ट  भरभरून  दिली  असते  कि  जेणेकरून   सगळी कसर  भरून  निघते..  पण  आपल्याकडे  आहे  त्या  गोष्टींचा  शोध  लागणं  हेच  जरा  अवघड  असतंना..  त्या  मुलामध्येही काही  खास  गुण  नक्कीच  असणार  ज्याने  त्याचा  आयुष्य  सुंदर  होत  असेल..  त्या  मुलाचे,त्याला  आधार  देणाऱ्या  त्याच्या  मित्रांचे, त्याला  प्रोत्साहन   देणाऱ्या  आणि काळजी  घेणाऱ्या  त्याच्या  पालकांचे, त्याला योग्य शिक्षण  देणाऱ्या  शिक्षकांचे  आणि  त्याला  नोकरी  देणाऱ्या  office चे  कौतुक  करावे  तितके  कमी  आहे..

ती  व्यक्ती  अवघ्या  क्षणात  खूप  काही  शिकवून  गेली..  सगळं  चांगलं  असताना  आपला  सूर  बरेचदा  तक्रारीचा असतो..  माझं  हे  असंच  का  आणि  ते  तसंच  का..  पण  आजूबाजूला  बघितल्यावर   कळत  कि  देवाने  जितकं  दिलय  ते  खूप  आहे  आणि  त्यासाठी  आपण  नेहमी  कृतज्ञ व नम्र  राहिलं  पाहिजे..  देवाच्या  कृपेने  आपणास  जे  काही  मिळालय  त्याचा माज न करता  चांगल्या  कारणांसाठी  सदुपयोग  केला  तर  आपल्या  आयुष्याचं  नक्कीच  सार्थक  होईलना! :)

1 टिप्पणी:

Bhagyashree म्हणाले...

agadi barobar lihiles tu...
Apan khupda radto ekhadi goshta jari aplya manasarki nahi zali kinva milali nahi...

Ashya lokanakade pahun nakkich sfurtidayak prerana milte..