सोमवार, १३ डिसेंबर, २०१०

तळं मनातलं..

उगवतीला  तांबडं  फुटतं..   अन तळं  लालसर  दिसतं..
दुपारचं  उन्ह  चढतं..   तसं ते सोनेरी  भासतं..

आकाश  निरभ्र  होतं..   अन तळं  निळाशार  दिसतं..
धुकं  दाटून  येतं..   तसं ते अस्पष्ट  भासतं..

जग  काळोखात  बुडतं..   अन तळं  सावळंसं  दिसतं..
चांदणं  फुलून  येतं..   तसं ते चंदेरी  भासतं..

मातीचं रूप  बदलतं..    अन तळं  मातकट  दिसतं..
ओंजळीत जितकं  येतं..   तसं ते रन्गहिन  भासतं..

ज्याचा जसा घडे संग..   तसा तळ्याचा होई रंग..
विचारात होई जेव्हा दंग..   ते तळं भासे मनापरी धुंद..

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